आधार कार्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने अपना पक्ष आक्रामक तरीके से रखा है. अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड के ख़िलाफ़ याचिका को लेकर जवाब दिया है.
मुकुल रोहतगी ने कहा कि संसद द्वारा बनाए गए क़ानून को चुनौती देने के केवल दो रास्ते हैं. पहला यह कि क्या संसद को ऐसे क़ानून बनाने का अधिकार है या नहीं और दूसरा कि क्या यह संविधान का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को आधार के मामले में निजता का तर्क देने का अधिकार नहीं है.
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- आधार के कारण ब्लैक मनी और आतंकवाद को धक्का लगेगा. आधार कार्ड पर फिंगरप्रिंट संपत्ति ख़रीदते वक़्त दिए जाने वाले फिंगरप्रिंट और वीज़ा, राशन कार्ड से अलग नहीं है. इसी तरह का फिंगरप्रिंट ड्राइविंग लाइसेंस पर भी होता है. याचिकाकर्ता इस बात का दावा नहीं कर सकता है कि उसके पास पासपोर्ट और फ़ोन नहीं हैं.
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- एजी के इस तर्क पर जस्टिस सिकरी ने कहा कि ये सेवाएं स्वैच्छिक हैं. इस पर एजी ने कहा, ''निजता क्या है? आपके पास घर है. आप जैसा ख़ुद को प्रोजेक्ट कर रहे हैं वैसे नहीं रहते. आप यह नहीं कह सकते हैं कि आप शून्य में रहते हैं. मैंने शारीरिक संपूर्णता की अवधारणा को ग़लत साबित होते देखा है. कुछ ख़ास नियमों के कारण गर्भपात पर भी पाबंदी है.''
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- पैन एक संदिग्ध दस्तावेज है. पैन स्थानीय दस्तावेजों के आधार पर बनता है, जिसमें फ़र्जीवाड़े की आशंका काफ़ी रहती है. (हालांकि आधार बनाने के लिए पैन कार्ड एक वैध दस्वावेज के रूप में कबूल किया जाता है.) धोखाधड़ी के कारण पैन संदिग्ध है. टैक्स की चोरी और ब्लैक मनी का इस्तेमाल ड्रग्स और आतंकवाद में किया जाता है. आधार के साथ फ़र्जीवाड़ा नहीं किया जा सकता है और यह सबसे सुरक्षित आईडी है.
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- FATCA के कारण पैन और आधार को जोड़ना अंतरराष्ट्रीय बाध्यता है. सरकार भारत में विदेशी नागरिकों पर उनकी सरकारों से सूचना साझा करती है. इस मामले में मजबूत सिस्टम नहीं रहा तो हम सूचना साझा नहीं कर सकते हैं. दुनिया के लिए हमारी ज़िम्मेदारी है.
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- आधार लोगों तक जनकल्याणकारी योजनाओं को पहुंचाने के लिए भी है. आधार कार्ड के ज़रिए जनवितरण प्रणाली के तहत खाद्य सामग्री और मनरेगा के फ़ायदे लोगों तक पहुंचाए जाएंगे. सरकार इसके अलावा आधार और किसी मक़सद से इस्तेमाल नहीं करने जा रही. एजी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा सरकार ने आधार की मदद से 50 हज़ार करोड़ रुपए की बचत की है.
- आधार से झारखंड में लोगों की सूचना लीक होने को लेकर एजी ने कहा कि इसमें केंद्र सरकार और यूआईडीएआई की नहीं बल्कि राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है.
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- एजी ने कहा कि लोगों को अपने शरीर पर भी पूरा अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा, ''इसे आपराधिक मामलों में देखा जा सकता है. अपराधी अपना फिंगरप्रिंट सौंपते हैं. मैं यह नहीं कह रहा कि सभी पर आरोप हैं, लेकिन हमें लोगों को शिनाख्त करने की ज़रूरत है.
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- एजी ने अपने शरीर पर अधिकार में राज्य की पाबंदियों का तर्क देते हुए शराब पीने के बाद मुंह में मशीन लगाकर जांच करने का उदाहरण दिया. हांलांकि जस्टिस सिकरी एजी के इस तर्क से सहमत नहीं हुए. उन्होंने कहा कि इन पाबंदियों से इसकी तुलना नहीं की जा सकती. इस मामले में तीन मई को भी कोर्ट में बहस होगी.
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