- आज का दिन 'श्रम दिवस' के रूप में जाना जाता है। लेकिन हिंदुस्तान मेंं कहीं-कहीं श्रमिकों की हालात यह है कि आप उन्हें सिर्फ 'जिंदा लाश' समझ सकते हैं। यहां सालों से लोग रोजी-रोटी के लिए लड़ रहे हैं, फिर भी सरकारों का ध्यान उनके लिए कुछ करने पर नहीं जाता। जयपुर में 4206 दिन से धरने पर मजदूर...
जितेंद्र सिंह शेखावत, जयपुर.
पूरी दुनिया में आज का दिन 'श्रम दिवस' के रूप में जाना जाता है। लेकिन हिंदुस्तान मेंं कहीं-कहीं श्रमिकों की हालात यह है कि आप उन्हें सिर्फ 'जिंदा लाश' समझ सकते हैं। यहां सालों से लोग रोजी-रोटी के लिए लड़ रहे हैं, फिर भी सरकारों का ध्यान उनके लिए कुछ करने पर नहीं जाता। जयपुर में 4206 दिन से धरने पर 'जिन्दा लाशें'....
आज जब सोमवार की सुबह हुई, Rajasthanpatrika.com ने माना कि दो जून की रोटी के लिए तरसते लोगों का दर्द ही दुनिया के सामने दर्शाएंगे। राजस्थान में यूंत तो मजदूरों की दुर्दशा से जुड़ी तमाम तस्वीरें दिल झकझोर देंगी, लेकिन 'जयपुर मैटल कारखाना' का मामला शायद सबसे हृदय विदारक हो सकता है। यहां काम करने वाले हजारों श्रमिक जिन्दा लाश हो गए।
सरकार के बंगलों से जरा सी दूर पर ही वे 17 साल से आन्दोलनरत हैं
जयपुर मैटल कारखाना बन्द क्या हुआ, वहां काम करने वाले श्रमिक जिन्दा लाश हो गए। सरकार के बंगलों से जरा सी दूर पर ही वे 17 साल से आन्दोलनरत हैं लेकिन सुनवाई नहीं हो रही। शायद इसीलिए कि रोजी-रोटी के लिए लड़ रहे ये मजदूर 'जिन्दा लाश' हैं। इन मजदूरों के धरने को इस मजदूर दिवस पर 4207 दिन पूरे हो जाएंगे। यह धरना राजस्थान के श्रमिक इतिहास में सम्भवत: सबसे लम्बा धरना है।
अचानक लगाया ताला, जमीन कौडिय़ों में बेची
- 30 सितम्बर 2000 को जयपुर मैटल कारखाने पर अचानक ताला लगा दिया गया था
- 1558 श्रमिक कायज़्रत थे तब
- 20 करोड़ रुपए मंजूर किए थे तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने कारखाना चलाने के लिए लेकिन उनकी सरकार चली गई और रकम जारी ही नहीं हो पाई
- 56 हजार वर्गगज जमीन पर बना था कारखाना, जमीन की कीमत आंकी गई ढाई अरब से ज्यादा
'रोजाना कब्र तक आतीं जिन्दा लाशें'
- 50 फीसदी से ज्यादा जमीन तो अफसरों ने कौडिय़ों में बेच दी, जहां आवासीय परिसर बन गए, बेचान में गड़बड़ी का मामला विधानसभा तक उठा, जांच का आदेश हुआ लेकिन हुआ कुछ नहीं
- 2005 में राजस्थान पत्रिका ने 'रोजाना कब्र तक आतीं जिन्दा लाशें' शीर्षक से मुद्दा उठाया।
- 11 माह का वेतन मिला श्रमिकों को पत्रिका के आवाज उठाने के बाद
- 01 एक निजी कम्पनी से सरकार ने करार भी किया लेकिन कारखाना नहीं चला
- 17 साल में श्रमिकों को ग्रेच्यूटी आदि कुछ नहीं मिला
दिल दहलाता है यह दर्द
- 402 श्रमिक दम तोड़ चुके हैं फैक्ट्री बन्द होने के बाद बीमारी और गरीबी के कारण अब तक
- 12 से ज्यादा मजदूर कर चुके हैं आत्महत्या
- 25 श्रमिक बेरोजगार होने के साथ बेघर भी हो गए, जिन्होंने मंदिरों व अन्य स्थानों पर शरण ली
- 01 नहीं बल्कि अनेक श्रमिक विक्षिप्त हो गए, जो चांदपोल मोक्षधाम और चांदपोल बाजार जैसे स्थानों पर चीखते-चिल्लाते देखे जा सकते हैं।
बच्चों तक ने कर ली आत्महत्या
श्रमिकों में सोडाला के घनश्याम फांसी लगा ली, सुशील कुमार ने जहर खा लिया, अलाउद्दीन सहित अनेक ने भी मौत को गले लगा लिया। ज्ञानप्रकाश के पुत्र अविनाश ने आत्महत्या की। कौशलकिशोर विक्षिप्त हो गया, फिर जीवनलीला खत्म कर ली।
कई लापता
कारखाना बंद होने के बाद इंदरसिंह, ओमप्रकाश व अमरसिंह लापता हो गए, जिनका 10 साल से कोई पता नहीं है।
पीड़ा यह भी
उपचार सुविधा नहीं मिलने और गरीबी के कारण श्रमिकों, उनके बच्चों का उपचार नहीं हो पा रहा। बच्चियों की पढ़ाई तो दूर, विवाह तक अटक गए।
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